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पद्मप्रभु जैन धर्म के छठे तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर वे होते है जो भक्तो को संसार सागर से मोक्ष तक का मार्ग दिखते है। जैन धर्म में श्री पदम् प्रभु भगवन का बहुत आदर और सम्मान है। आइये श्री पद्मप्रभुजी चालीसा के बारे में जानते है।

जैन धर्म में चालीसा का पाठ भक्तिभाव बढ़ाने और मन को शांत करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। श्री पद्मप्रभुजी चालीसा के पाठ से मन की शांति मिलती है तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

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हमने जैन धर्म की कई प्रमुख चालीसा का वर्णन अपने लेखो में किया है आप उन्हें भी पढ़ सकते है जैसे श्री नमिनाथ चालीसा, श्री वासुपूज्य चालीसा, श्री मुनिसुव्रत चालीसा, श्री आदिनाथ चालीसा और श्री मल्लिनाथ चालीसा

श्री पद्मप्रभुजी चालीसा (Padampura Chalisa)

शीश नवा अर्हंत को सिद्धन करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ||___१

सर्व साधु और सरस्वती जिन मन्दिर सुखकार |
पद्मपुरी के पद्म को मन मन्दिर में धार ||___२

जय श्रीपद्मप्रभु गुणधारी, भवि जन को तुम हो हितकारी |
देवों के तुम देव कहाओ, पाप भक्त के दूर हटाओ ||१||

तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, छट्टे तीर्थंकर कहलाओ |
तीन काल तिहुं जग को जानो, सब बातें क्षण में पहचानो ||२||

वेष दिगम्बर धारणहारे, तुम से कर्म शत्रु भी हारे |
मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर, दृष्टि सुखद जमती नासा पर ||३||

क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग द्वेष का लेश न पाया |
वीतराग तुम कहलाते हो, ; सब जग के मन को भाते हो ||४||

कौशाम्बी नगरी कहलाए, राजा धारणजी बतलाए |
सुन्दरि नाम सुसीमा उनके, जिनके उर से स्वामी जन्मे ||५||

कितनी लम्बी उमर कहाई, तीस लाख पूरब बतलाई |
इक दिन हाथी बंधा निरख कर, झट आया वैराग उमड़कर ||६||

कार्तिक वदी त्रयोदशी भारी, तुमने मुनिपद दीक्षा धारी |
सारे राज पाट को तज के, तभी मनोहर वन में पहुंचे ||७||

तप कर केवल ज्ञान उपाया, चैत सुदी पूनम कहलाया |
एक सौ दस गणधर बतलाए, मुख्य व्रज चामर कहलाए ||८||

लाखों मुनि आर्यिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों |
संख्याते तिर्यच बताये, देवी देव गिनत नहीं पाये ||९||

फिर सम्मेदशिखर पर जाकर, शिवरमणी को ली परणा कर|
पंचम काल महा दुखदाई, जब तुमने महिमा दिखलाई ||१०||

जयपुर राज ग्राम बाड़ा है, स्टेशन शिवदासपुरा है |
मूला नाम जाट का लड़का, घर की नींव खोदने लागा ||११||

खोदत-खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनता को बतलाई |
चिन्ह कमल लख लोग लुगाई, पद्म प्रभु की मूर्ति बताई ||१२||

मन में अति हर्षित होते हैं, अपने दिल का मल धोते हैं |
तुमने यह अतिशय दिखलाया, भूत प्रेत को दूर भगाया ||१३||

भूत प्रेत दुःख देते जिसको, चरणों में लेते हो उसको |
जब गंधोदक छींटे मारे, भूत प्रेत तब आप बकारे ||१४||

जपने से जब नाम तुम्हारा, भूत प्रेत वो करे किनारा |
ऐसी महिमा बतलाते हैं, अन्धे भी आंखे पाते है ||१५||

प्रतिमा श्वेत-वर्ण कहलाए, देखत ; ही हिरदय को भाए |
ध्यान तुम्हारा जो धरता है, इस भव से वह नर तरता है ||१६||

अन्धा देखे, गूंगा गावे, लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे |
बहरा सुन-सुन कर खुश होवे, जिस पर कृपा तुम्हारी होवे||१७||

मैं हूं स्वामी दास तुम्हारा, मेरी नैया कर दो पारा |
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनावे, पद्म प्रभु को शीश नवावे ||१८||

—|| सोरठा ||—

नित ही चालीस बार, पाठ करे चालीस ।
खेय सुगंध अपार, पदमपुरी में आय के ।।१।।

होय कुबेर समान, जन्म दरिद्र होय जो ।
जिसके नहीं संतान, नाम वंश जग में चले ।।२।।

कैसे करें श्री पद्मप्रभुजी चालीसा का पाठ

सबसे पहले स्नान आदि करके शुद्ध हो जाइये और जैन मंदिर या घर पर भगवन के सामने श्री पदम् प्रभु चालीसा चालीसा का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करे। आप नियमित रूप से चालीसा का पाठ करके श्री पदम् प्रभु भगवन का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है।

श्री पद्मप्रभुजी चालीसा का महत्व

श्री पद्मप्रभुजी चालीसा के नियमित रूप से पाठ करने पर जीवन में सुखद बदलाव आना शुरू हो जाते है। चालीसा के पाठ से भक्त के पापों का नाश होता हे, सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, भक्ति भाव बढ़ता है, मन की शांति प्राप्त होती है, रोगों से मुक्ति मिलती है, तथा आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।

Padampura Chalisa PDF

श्री पद्मप्रभुजी चालीसा के नियमित रूप से पाठ करने पर भक्त के जीवन में उन्नति प्राप्त होती है। हमने आपके लिए श्री पद्मप्रभुजी चालीसा की PDF को तैयार किया है जिस से आप आसानी से प्रतिदिन चालीसा का पाठ कर सकते है।

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