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श्री छिन्नमस्ता को हिन्दू धर्म में पूजा जाता हैं श्री छिन्नमस्ता जी जा रूप उग्र हैं जो दिखने में भयानक और रहस्य्मय हैं। कई लोग जब श्री छिन्नमस्ता के रूप को पहली बार देखते हैं तो वे दर जाते हैं। इनकी स्तुति में ही श्री छिन्नमस्ता चालीसा (Chinnamasta Chalisa) को लिखा गया हैं।

श्री छिन्नमस्ता के तीन सिर हैं जिनमे से एक सिर को कटा हुआ दिखाया गया हैं। तीन पैर और दस हाथ हैं जिनमे से एक पैर उन्होंने काट दिया हैं और हाथो में हथियार और अन्य वस्तुए हैं। इनकी पूजा करने से बुरी शक्तियों से रक्षा मिलती हैं सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इन पर भी ध्यान दे मां शाकंभरी देवी चालीसा, मां काली चालीसा, दुर्गा चालीसा, रानी सती दादी चालीसा और कैला देवी चालीसा.

श्री छिन्नमस्ता चालीसा – Chinnamasta Chalisa

—दोहा—

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अपना मस्तक काट कर |
लीन्ह हाथ में थाम ||
कमलासन पर पग तले |
दलित हुए रतिकाम ||
जगतारण ही काम है |
रजरप्पा है धाम ||
छिन्नमस्तका को करूं |
बारंबार प्रणाम ||

—चौपाई—

जय गणेश जननी गुण खानी , जयति छिन्नमस्तका भवानी ॥१॥

गौरी सती उमा रुद्राणी , जयति महाविद्या कल्याणी ॥२॥

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सर्वमंगला मंगलकारी , मस्तक खड्ग धरे अविकारी ॥३॥

रजरप्पा में वास तुम्हारा , तुमसे सदा जगत उजियारा ॥४॥

तुमसे जगत चराचर माता , भजें तुम्हें शिव विष्णु विधाता ॥५॥

यति मुनीन्द्र नित ध्यान लगावें , नारद शेष नित्य गुण गावें ॥६॥

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मेधा ऋषि को तुमने तारा , सूरथ का सौभाग्य निखारा ॥७॥

वैश्य समाधि ज्ञान से मंडित , हुआ अंबिके पल में पंडित ॥८॥

रजरप्पा का कण-कण न्यारा , दामोदर पावन जल धारा ॥९॥

मिली जहां भैरवी भवानी , महिमा अमित न जात बखानी ॥१०॥

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जय शैलेश सुता अति प्यारी , जया और विजया सखि प्यारी ॥११॥

संगम तट पर गई नहाने , लगी सखियों को भूख सताने ॥१२॥

तब सखियन ने भोजन मांगा , सुन चित्कार जगा अनुरागा ॥१३॥

निज सिर काट तुरत दिखलाई , अपना शोणित उन्हें पिलाई ॥१४॥

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तबसे कहें सकल बुध ज्ञानी , जयतु छिन्नमस्ता वरदानी ॥१५॥

तुम जगदंब अनादि अनन्ता , गावत सतत वेद मुनि सन्ता ॥१६॥

उड़हुल फूल तुम्हें अति भाये , सुमन कनेर चरण रज पाये ॥१७॥

भंडारदह संगम तट प्यारे , एक दिवस एक विप्र पधारे ॥१८॥

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लिए शंख चूड़ी कर माला , आयी एक मनोरम बाला ॥१९॥

गौर बदन शशि सुन्दर मज्जित , रक्त वसन शृंगार सुसज्जित ॥२०॥

बोली विप्र इधर तुम आओ , मुझे शंख चूड़ी पहनाओ ॥२१॥

बाला को चूड़ी पहनाकर , चला विप्र अतिशय सुख पाकर ॥२२॥

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सुनहु विप्र बाला तब बोली , जटिल रहस्य पोटली खोली ॥२३॥

परम विचित्र चरित्र अखंडा , मेरे जनक जगेश्वर पंडा ॥२४॥

दाम तोहि चूड़ी कर देंगे , अति हर्षित सत्कार करेंगे ॥२५॥

पहुंचे द्विज पंडा के घर पर , चकित हुए वह भी सब सुनकर ॥२६॥

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दोनों भंडार दह पर आये , छिन्नमस्ता का दर्शन पाये ॥२७॥

उदित चंद्रमुख शोषिण वसनी , जन मन कलुष निशाचर असनी ॥२८॥

रक्त कमल आसन सित ज्वाला , दिव्य रूपिणी थी वह बाला ॥२९॥

बोली छिन्नमस्तका माई , भंडार दह हमरे मन भाई ॥३०॥

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जाको विपदा बहुत सतावे , दुर्जन प्रेत जिसे धमकावे ॥३१॥

बढ़े रोग ऋण रिपु की पीरा , होय कष्ट से शिथिल शरीरा ॥३२॥

तो नर कबहूं न मन भरमावे , तुरत भाग रजरप्पा आवे ॥३३॥

करे भक्ति पूर्वक जब पूजा , सुखी न हो उसके सम दूजा ॥३४॥

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उभय विप्र ने किन्ह प्रणामा , पूर्ण भये उनके सब कामा ॥३५॥

पढ़े छिन्नमस्ता चालीसा , अंबहि नित्य झुकावहिं सीसा ॥३६॥

ता पर कृपा मातु की होई , फिर वह करै चहे मन जोई ॥३७॥

मैं अति नीच लालची कामी , नित्य स्वार्थरत दुर्जन नामी ॥३८॥

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छमहुं छिन्नमस्ता जगदम्बा , करहुं कृपा मत करहुं विलंबा ॥३९॥

विनय दीन आरत सुत जानी , करहुं कृपा जगदंब भवानी ॥४०॥

श्री छिन्नमस्ता चालीसा का पाठ क्यों करें?

  • शक्ति प्राप्ति के लिए: वे लोग या भक्त जो जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं और सफल शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  • बुरी शक्तियों से बचाव के लिए: अगर आपको किसी की बुरी नजर लग गयी हैं तो ऐसे में चालीसा का पाठ करना आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता हैं जिससे आप बुरी शक्तियों से और बुरी नजर से बचे रहेंगे।
  • मन की शांति के लिए: वे लोग जो मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं और मन को शांत तथा मन की शांति प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें भी चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  • आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए: अगर आपमें आत्मविश्वाश की कमी हैं और आत्मविश्वाश बढ़ाना चाहते हैं तो आपको चालीसा पढ़नी चाहिए।
  • सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति के लिए: श्री छिन्नमस्ता चालीसा का नियमित रूप से पथ करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख बना रहता हैं।

Chinnamasta Chalisa Hindi PDF

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