Loading...

आदिनाथ जी जैन धर्म के 24वे तीर्थकरो में से पहले तीर्थकार हैं जिन्होंने मोक्ष की प्राप्ति की और ज्ञान का मार्गदर्शन दिया। जैन धर्म में श्री आदिनाथ जी को सर्वोच्च देवता के रूप में पूजा जाता हैं। आदिनाथ राजा नभि और रानी मरुदेवी के पुत्र थे उन्होंने एक राजकुमार के रूप में जीवन यापन किया लेकिन बाद में सभी मोह माया को त्याग कर संसार से अलग हो गए और कठोर तपस्या में चले गए जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुयी।

आदिनाथ चालीसा का पाठ करने वाले लोग सकारत्मक ऊर्जा से भरपूर रहते हैं और बेहतर जीवन की और बढ़ते हैं। जीवन में आने वाली परेशानिये से दूर रहते हैं।

Advertisement
RamShalaka AI - Call to Action
🕉️

RamShalaka AI

अब पूछें अपने मन का कोई भी सवाल और पाएं अपनी परेशानी का समाधान

📿

आरती

पवित्र आरतियों का संग्रह

🔮

मंत्र

शक्तिशाली मंत्रों का भंडार

📜

श्लोक

पुराने श्लोकों का खजाना

अभी उपयोग करें RamShalaka AI और जुड़ें हिंदू कम्युनिटी के लोगों से

निःशुल्क • तुरंत उपलब्ध • विश्वसनीय

सुरक्षित
प्रामाणिक
24/7 उपलब्ध
🎯 आपके सभी धार्मिक सवालों का जवाब एक ही जगह!

श्री आदिनाथ चालीसा

दोहा

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।

उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।

आदिनाथ भगवान को, मन मन्दिर में धार ।।

चौपाई

जै जै आदिनाथ जिन स्वामी ।
तीनकाल तिहूं जग में नामी ॥

वेष दिगम्बर धार रहे हो ।
कर्मो को तुम मार रहे हो ॥

हो सर्वज्ञ बात सब जानो ।
सारी दुनियां को पहचानो ॥

नगर अयोध्या जो कहलाये ।
राजा नाभिराज बतलाये ॥

मरुदेवी माता के उदर से ।
चैत वदी नवमी को जन्मे ॥

तुमने जग को ज्ञान सिखाया ।
कर्मभूमी का बीज उपाया ॥

कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने ।
जनता आई दुखड़ा कहने ॥

सब का संशय तभी भगाया ।
सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ॥

खेती करना भी सिखलाया ।
न्याय दण्ड आदिक समझाया ॥

तुमने राज किया नीति का ।
सबक आपसे जग ने सीखा ॥

पुत्र आपका भरत बताया ।
चक्रवर्ती जग में कहलाया ॥

बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे ।
भरत से पहले मोक्ष सिधारे ॥

सुता आपकी दो बतलाई ।
ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ॥

उनको भी विध्या सिखलाई ।
अक्षर और गिनती बतलाई ॥

एक दिन राजसभा के अंदर ।
एक अप्सरा नाच रही थी ॥

आयु उसकी बहुत अल्प थी ।
इसलिए आगे नहीं नाच रही थी ॥

विलय हो गया उसका सत्वर ।
झट आया वैराग्य उमड़कर ॥

बेटो को झट पास बुलाया ।
राज पाट सब में बंटवाया ॥

छोड़ सभी झंझट संसारी ।
वन जाने की करी तैयारी ॥

राव हजारों साथ सिधाए ।
राजपाट तज वन को धाये ॥

लेकिन जब तुमने तप किना ।
सबने अपना रस्ता लीना ॥

वेष दिगम्बर तजकर सबने ।
छाल आदि के कपड़े पहने ॥

भूख प्यास से जब घबराये ।
फल आदिक खा भूख मिटाये ॥

तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये ।
जो अब दुनियां में दिखलाये ॥

छै: महीने तक ध्यान लगाये ।
फिर भजन करने को धाये ॥

भोजन विधि जाने नहि कोय ।
कैसे प्रभु का भोजन होय ॥

इसी तरह बस चलते चलते ।
छः महीने भोजन बिन बीते ॥

नगर हस्तिनापुर में आये ।
राजा सोम श्रेयांस बताए ॥

याद तभी पिछला भव आया ।
तुमको फौरन ही पड़धाया ॥

रस गन्ने का तुमने पाया ।
दुनिया को उपदेश सुनाया ॥

पाठ करे चालीसा दिन ।
नित चालीसा ही बार ॥

चांदखेड़ी में आय के ।
खेवे धूप अपार ॥

जन्म दरिद्री होय जो ।
होय कुबेर समान ॥

नाम वंश जग में चले ।
जिनके नहीं संतान ॥

तप कर केवल ज्ञान पाया ।
मोक्ष गए सब जग हर्षाया ॥

अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर ।
चांदखेड़ी भंवरे के अंदर ॥36॥

उसका यह अतिशय बतलाया ।
कष्ट क्लेश का होय सफाया ॥

मानतुंग पर दया दिखाई ।
जंजीरे सब काट गिराई ॥

राजसभा में मान बढ़ाया ।
जैन धर्म जग में फैलाया ॥

मुझ पर भी महिमा दिखलाओ ।
कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥

Also Check –

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *