श्री मल्लिनाथ जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर थे और जैन धर्म के अनुयायी बहुत सम्मान करते हैं। जैन परंपरा के अनुसार तीर्थंकर वे महान आत्माएं होती हैं जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया है और मोक्ष के मार्ग का मार्गदर्शन किया हैं।
इस लेख में आप श्री मल्लिनाथ चालीसा तथा चालीसा पढ़ने के लाभ के बारे में जानेंगे। जैन तीर्थंकर में मल्लिनाथ विशेष हैं क्योंकि दिगंबर परंपरा में उन्हें पुरुष तीर्थंकर माना जाता है जबकि श्वेतांबर परंपरा में उन्हें एकमात्र महिला तीर्थंकर माना जाता है।
हमने जैन धर्म की कई प्रमुख चालीसा का वर्णन अपने पिछले लेखो में किया है आप उन्हें भी पढ़ सकते है जैसे भगवान महावीर चालीसा, श्री वासुपूज्य चालीसा, श्री मुनिसुव्रत चालीसा, श्री नमिनाथ चालीसा, और श्री आदिनाथ चालीसा।
श्री मल्लिनाथ चालीसा (Mallinath Chalisa)
मोहमल्ल मद मर्दन करते, मन्मथ दुर्ध्दर का मद हरते ।
धैर्य खडग से कर्म निवारे, बाल्यती को नमन हमारे ।।१।।
बिहार प्रान्त की मिथिला नगरी, राज्य करे कुम्भ काश्यप गोत्री ।
प्रभावती महारानी उनकी, वर्षा होती थी रत्नो की ।।२।।
अपराजित विमान को तज कर, जननी उदार बसे प्रभु आकर ।
मंगसिर शुक्ल एकादशी शुभ दिन, जन्मे तीन ज्ञान युक्त श्री जिन ।।३।।
पूनम चन्द्र समान हो शोभित, इंद्र न्वहन करते हो मोहित ।
तांडव नृत्य करे खुश हो कर, निरखे प्रभु को विस्मित हो कर ।।४।।
बढे प्यार से मल्लि कुमार, तन की शोभा हुई अपार ।
पचपन सहस आयु प्रभुवर की, पच्चीस धनु अवगाहन वपु की ।।५।।
देख पुत्र की योग्य अवस्था, पिता ब्याह की करें व्यवस्था ।
मिथिलापूरी को खूब सजाया, कन्या पक्ष सुनकर हर्षाया ।।६।।
निज मन में करते प्रभु मंथन, हैं विवाह एक मीठा बंधन ।
विषय भोग रूपी ये कर्दम, आत्म ज्ञान के करदे दुर्गम ।।७।।
नहीं आसक्त हुए विषयन में, हुए विरक्त गये प्रभु वन में ।
मंगसिर शुक्ल एकादशी पावन, स्वामी दीक्षा करते धारण ।।८।।
दो दिन तक धरा उपवास, वन में ही फिर किया निवास ।
तीसरे दिन प्रभु करे निवास, नन्दिषेण नृप दे आहार ।।९।।
पात्रदान से हर्षित हो कर, अचरज पाँच करे सुर आकर ।
मल्लिनाथ जो लौटे वन में, लीन हुए आतम चिंतन में ।।१०।।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण, अल्प समय में उपजा ज्ञान ।
केवलज्ञानी हुए छः दिन में, घंटे बजने लगे स्वर्ग में ।।११।।
समोशरण की रचना साजे, अन्तरिक्ष में प्रभु विराजे ।
विशाक्ष आदि अट्ठाईस गणधर, चालीस सहस थे ज्ञानी मुनिवर।।१२।।
पथिको को सत्पथ दिखलाया, शिवपुर का सनमार्ग दिखाया ।
औषधि शाष्त्र अभय आहार, दान बताये चार प्रकार ।।१३।।
पाँच समिति लब्धि पांच, पांचो पैताले हैं साँच ।
षट लेश्या जीव षटकाय, षट द्रव्य कहते समझाय ।।१४।।
सात तत्त्व का वर्णन करते, सात नरक सुन भविमन डरते ।
सातों ने को मन में धारे, उत्तम जन संदेह निवारे ।।१५।।
दीर्घ काल तक दिया उपदेश, वाणी में कटुता नहीं लेश ।
आयु रहने पर एक मास, शिखर सम्मेद पे करते वास ।।१६।।
योग निरोध का करते पालन, प्रतिमा योग करें प्रभु धारण ।
कर्म नाश्ता कीने जिनराई, तत्क्षण मुक्ति रमा परणाई ।।१७।।
फाल्गुन शुक्ल पंचमी न्यारी, सिद्ध हुए जिनवर अविकारी ।
मोक्ष कल्याणक सुर नर करते, संवल कूट की पूजा करते ।।१८।।
चिन्ह कलश था मल्लिनाथ का, जीन महापावन था उनका ।
नरपुंगव थे वे जिनश्रेष्ठ, स्त्री कहे जो सत्य न लेश ।।१९।।
कोटि उपाय करो तुम सोच, स्त्रीभव से हो नहीं मोक्ष ।
महाबली थे वे शूरवीर, आत्म शत्रु जीते धार धीर ।।२०।।
अनुकम्पा से प्रभु मल्लि की, अल्पायु हो भव वल्लि की ।
अरज त्याही हैं बस अरुणा की, दृष्टि रहे सब पर करुणा की।।२१।।
श्री मल्लिनाथ चालीसा 2
|| दोहा ||
मल्लिनाथ महाराज का, चालीसा मनहार।
चालीस दिन तुम नियम से, पढ़िये चालीस बार।।
दर्शन को चलते समय, करिये इसका पाठ।
दुख- चिन्ता, बाधा मिटे, उपजै ‘सुमत’ विचार।।
|| चौपाई ||
जय श्री मल्लिनाथ जिनराजा,
मिथिला नगरी के महाराजा।
पिता कुम्भ प्रभावित माता,
इक्ष्वाकु कुल जग विख्याता।।१।।
तज कर शादी की तैयारी,
आकर दीक्षा वन में धारी।
अथिर असार समझ जग माया,
राजकुमार त्याग मन भाया।।।२।।
ऐसा तुमने ध्यान लगाया,
केवलज्ञान छठें दिन पाया।
ऊँचा पच्चीस धनुष वदन था,
चिह्न कलश का रंग स्वर्ण था।।३।।
दिए उपदेश महान निरन्तर,
समवशरण में अठाईस गणधर।
आयु पचपन सहस्र साल की,
बीती परहित दीनदयाल की।।४।।
करते हुए हितकार हितंकर,
समवशरण आया हस्तिनापुर।
बनी याद में निशियाँ उनकी,
दे शिवधाम वन्दना जिनकी।।५।।
धन्य- धन्य श्री मल्लि जिनेश्वर,
मुक्ति गए सम्मेद शिखर पर।
पहली निशियाँ शान्तिनाथ की,
दूजी निशियाँ कुंथुनाथ की।।६।।
तीजी निशियाँ अरहनाथ की,
चौथी निशियाँ मल्लिनाथ की।
गए जिनको द्रव्य चढ़ावे,
सोलह शुद्ध भावना भावें।।७।।
अजब विशाल है मन्दिर मनहित,
चार जगह प्रतिमा स्थापित।
मानस्तम्भ बने द्वार पर,
बिम्ब विराजे चौमुख जिसपर।।८।।
बीते छह माह करत विहारा,
मिला ठीक तब प्रथम अहारा।
यही दियो श्रेयांस राव ने,
यही लियो रस आदिनाथ ने।।९।।
कष्ट सात सौ मुनि पर आया,
आकर विष्णुकुमार हटाया।
पांडव दो एक भव शिव लीनो,
बाकी चर्म शरीरों तीनो।।१०।।
यही द्रौपदी चीर बढ़े थे,
कौरव- पांडव राज किये थे।
मेरठ जिला श्री हस्तिनापुर,
आते-जाते निशदिन मोटर।।११।।
बना गुरुकुल सबसे अच्छा,
सभी तरह की मिलती शिक्षा।
स्वच्छ सदाचारी वो रहकर,
ज्ञानी गुणी बने पढ़- पढ़कर।।१२।।
होती रहती शास्त्र सभाएँ,
जाती रहती मन शंकाएँ।
ब्रह्मचारी त्यागी गृहस्थी जन,
करें करायें आत्म चिंतवन।।१३।।
उत्तम छह हो धर्मशालायें,
नर- नारी रहकर सुख पायें।
बिजली लगे नल जल के,
सुन्दर पौधे मीठे फल के।।१४।।
करें प्रबन्ध मंत्रीजी मैनेजर,
पढ़े अधिक छवि महोत्सवों पर।।
जेठ व कार्तिक निर्वाण के,
लड्डू चढ़ते शान्तिवीर के।।१५।।
आये हज़ारो बहना- भाई,
आते जब दिन पर्व अठाई।
मेला हो कार्तिक में भारी,
चीज़ मिले बाजार में सारी।।१६।।
लाता सुमत सदा से पुस्तक,
सर्वोपयोगी धर्म प्रचारक।
दर्शन पूजन भजन आरती,
कर- कर होते मुद्रित यात्री।।१७।।
परिग्रह त्याग त्याग मन भरते,
गुण अपने अवलोकन करते।
मानव धर्म मिला उपयोगी,
मत करना ये विषयन भोगी।।१८।।
तरुषायी मत व्यर्थ लुटाना,
वृद्धावस्था मत दुख उठाना।
उत्तमोत्तम ये भरी जवानी,
निश्चय यही सकल लसानी।।१९।।
करना मत अपनी मनमानी,
अच्छी इच्छायें मन में लानी।
रत्नत्रय दश धर्म सुहाना,
धर्म- कर्म नित सुमत निभाना।।।२०।।
श्री मल्लिनाथ जी चालीसा के लाभ
श्री मल्लिनाथ जी चालीसा का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से जीवन में समृद्धि और सफलता मिलती है। भक्त सभी दुखो से मुक्त रहता है तथा उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। श्री मल्लिनाथ चालीसा जा पाठ करने से व्यक्ति आध्यात्म के मार्ग में आगे बढ़ता है और जीवन में सुख तथा शांति रहती है।
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