श्री शनि चालीसा
दोहा:
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
चौपाई:
जय जय श्री शनिदेव, दयाला।
करहु कृपा रघुनाथ के नाला॥
हाट, बाजार, ग्राम को राजा।
यहि विधि कष्ट भंजन महाराजा॥
धूप, दीप, नैवेद्य चढ़ावत।
सिन्दूर चढ़ाकर मस्तक नवावत॥
तुम बिन कृपा दीन पर नाहीं।
करहु कृपा जय जय उर लाहीं॥
कृपा करहु शनि देव अनाथा।
रखु शरण अब लो हमके राखा॥
हे कश्यप नंदन सब दुःख हरनी।
ज्ञान विवेक बुद्धि बलदानी॥
जयति जय जय श्री शनिदेव।
अरुण चर्मा करम निसाचर॥
कृपा कटाक्ष हम पर रखो।
सब अनिष्ट दूर अब करो॥
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