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मां शाकंभरी अन्न तथा समृद्धि की देवी है जिनकी चालीसा के पाठ से जीवन में सुख समृद्धि बढ़ जाती है तथा कभी भी अनाज की कमी नहीं रहती है।

मां शाकंभरी की पूजा पुरे भारत वर्ष में होती है लेकिन मुख्य रूप से उत्तर भारत में माता की लोकप्रियता अधिक है। शाकंभरी माता के मंदिरो में भक्तों की बहुत भीड़ लगी रहती है और सभी भक्त माता के आशीर्वाद की कामना से मंदिर आते हैं।

मां शाकंभरी के नाम का अर्थ है शाक, सब्जिया, तथा अनाज। आइये इस लेख में हम मां शाकंभरी देवी चालीसा तथा चालीसा के महत्व के बारे में जानते हैं और यह भी जानते हैं कि मां शाकंभरी चालीसा का पाठ मुख्य रूप से कब किया जाता है।

मां शाकंभरी देवी चालीसा

—॥ दोहा ॥—

बन्दउ माँ शाकम्भरी चरणगुरू का धरकर ध्यान,
शाकम्भरी माँ चालीसा का करे प्रख्यान ॥__

आनंदमयी जगदम्बिका अनन्तरूप भण्डार,
माँ शाकम्भरी की कृपा बनी रहे हर बार ॥__

—॥ चालीसा ॥—

शाकम्भरी माँ अति सुखकारी, पूर्ण ब्रह्म सदा दुःखहारी ॥
कारण करण जगत की दाता, आंनद चेतन विश्वविधाता ॥१॥

अमर जोत है मात तुम्हारी, तुम ही सदा भगतन हितकारी ॥
महिमा अमित अथाह अपर्णा, ब्रह्म हरी हर मात अपर्णा ॥२॥

ज्ञान राशि हो दीन दयाली, शरणागत घर भरती खुशहाली ॥
नारायणी तुम ब्रह्म प्रकाशी, जल-थल-नभ हो अविनाशी ॥३॥

कमल कान्तिमय शान्ति अनपा, जोतमन मर्यादा जोत स्वरूपा ॥
जब जब भक्तों ने है ध्याई, जोत अपनी प्रकट हो आई ॥४॥

प्यारी बहन के संग विराजे, मात शताक्षि संग ही साजे ॥
भीम भयंकर रूप कराली, तीसरी बहन की जोत निराली ॥५॥

चौथी बहन भ्रामरी तेरी, अद्भुत चंचल चित्त चितेरी ॥
सम्मुख भैरव वीर खड़ा है, दानव दल से खूब लड़ा है ॥६॥

शिव शंकर प्रभु भोले भण्डारी, सदा रहे सन्तन हितकारी ॥
हनुमत माता लौकड़ा तेरा, सदा शाकम्भरी माँ का चेरा ॥७॥

हाथ ध्वजा हनुमान विराजे, युद्ध भूमि में माँ संग साजे ॥
कालरात्रि धारे कराली, बहिन मात की अति विकराली ॥८॥

दश विद्या नव दुर्गा आदि, ध्याते तुम्हें परमार्थ वादि ॥
अष्ट सिद्धि गणपति जी दाता, बाल रूप शरणागत माता ॥९॥

माँ भंडारे के रखवारी, प्रथम पूजने की अधिकारी ॥
जग की एक भ्रमण की कारण, शिव शक्ति हो दुष्ट विदारण ॥१०॥

भूरा देव लौकडा दूजा, जिसकी होती पहली पूजा ॥
बली बजरंगी तेरा चेरा, चले संग यश गाता तेरा ॥११॥

पांच कोस की खोल तुम्हारी, तेरी लीला अति विस्तारी ॥
रक्त दन्तिका तुम्हीं बनी हो, रक्त पान कर असुर हनी हो ॥१२॥

रक्तबीज का नाश किया था, छिन्न मस्तिका रूप लिया था ॥
सिद्ध योगिनी सहस्या राजे, सात कुण्ड में आप विराजे ॥१३॥

रूप मराल का तुमने धारा, भोजन दे दे जन जन तारा ॥
शोक पात से मुनि जन तारे, शोक पात जन दुःख निवारे ॥१४॥

भद्र काली कमलेश्वर आई, कान्त शिवा भगतन सुखदाई ॥
भोग भण्डार हलवा पूरी, ध्वजा नारियल तिलक सिंदूरी ॥१५॥

लाल चुनरी लगती प्यारी, ये ही भेंट ले दुःख निवारी ॥
अंधे को तुम नयन दिखाती, कोढ़ी काया सफल बनाती ॥१६॥

बाँझन के घर बाल खिलाती, निर्धन को धन खूब दिलाती ॥
सुख दे दे भगत को तारे, साधु सज्जन काज संवारे ॥१७॥

भूमण्डल से जोत प्रकाशी, शाकम्भरी माँ दुःख की नाशी ॥
मधुर मधुर मुस्कान तुम्हारी, जन्म जन्म पहचान हमारी ॥१८॥

चरण कमल तेरे बलिहारी, जै जै जै जग जननी तुम्हारी ॥
कांता चालीसा अति सुखकारी, संकट दुःख दुविधा टारी ॥१९॥

जो कोई जन चालीसा गावे, मात कृपा अति सुख पावे ॥
कान्ता प्रसाद जगाधरी वासी, भाव शाकम्भरी तत्त्व प्रकाशी ॥२०॥

बार बार कहें कर जोरी, विनिती सुन शाकम्भरी मोरी ॥
मैं सेवक हूँ दास तुम्हारा, जननी करना भव निस्तारा ॥२१॥

यह सौ बार पाठ करे कोई, मातु कृपा अधिकारी सोई ॥
संकट कष्ट को मात निवारे, शोक मोह शत्रुन संहारे ॥२२॥

निर्धन धन सुख संपत्ति पावे, श्रद्धा भक्ति से चालीसा गावे ॥
नौ रात्रों तक दीप जगावे, सपरिवार मगन हो गावे ॥
प्रेम से पाठ करे मन लाई, कान्त शाकम्भरी अति सुखदाई ॥२३॥

—॥ दोहा ॥—

दुर्गासुर संहारणी करणि जग के काज,
शाकम्भरी जननि शिवे रखना मेरी लाज ॥___

युग युग तक व्रत तेरा करे भक्त उद्धार,
वो ही तेरा लाड़ला आवे तेरे द्वार ॥___

शाकंभरी माता चालीसा – 2

—॥ दोहा ॥—

श्री गणपति गुरुपद कमल, सकल चराचर शक्ति ।
ध्यान करिअ नित हिय कमल । प्रणमिअ विनय सभक्ति ।___१

आद्या शक्ति पधान, शाकम्भरी चरण युगल ।
प्रणमिअ पुनि करि ध्यान, नील कमल रुचि अति बिमल ॥___२

—॥ चौपाई ॥—

जय जय श्री शाकम्भरी जगदम्बे, सकल चराचर जग अविलम्बए ।
जयति सृष्टि पालन संहारिणी, भव सागर दारुण दुःख हारिणी ।।१।।

नमो नमो शाकम्भरी माता, सुख सम्पत्ति भव विभव विधाता ।
तव पद कमल नमहिं सब देवा, सकल सुरासुर नर गन्धर्वा ।।२।।

आद्या विद्या नमो भवानी, तूँ वाणी लक्ष्मी रुद्राणी ।
नील कमल रूचि परम सुरूपा, त्रिगुणा त्रिगुणातीत अरूपा ।।३।।

इन्दीवर सुन्दर वर नयना, भगत सुलभ अति पावन अयना ।
त्रिवली ललित उदर तनु देहा, भावुक हृदय सरोज सुगेहा ।।४।।

शोभत विग्रह नाभि गम्भीरा, सेवक सुखद सुभव्य शरीरा ।
अति प्रशस्त धन पीन उरोजा, मंगल मन्दिर बदन सरोजा ।।५।।

काम कल्पतरु युग कर कमला, चतुर्वर्ग फलदायक विमला ।
एक हाथ सोहत हर तुष्टी, दुष्ट निवारण मार्गन मुष्टी ।।६।।

अपर विराजत सुरुचि चापा, पालन भगत हरत भव तापा ।
एक हाथ शोभत बहु शाका, पुष्प मूल फल पल्लव पाका ।।७।।

नाना रस, संयुक्त सो सोहा, हरत भगत भय दारुण मोहा ।
एहि कारण शाकम्भरी नामा, जग विख्यात दत सब कामा ।।८।।

अपर हाथ बिलसत नव पंकज, हरत सकल संतन दुःख पंकज ।
सकल वेद वन्दित गुण धामा, निखिल कष्ट हर सुखद सुनामा ।।९।।

शाकम्भरी शताक्षी माता, दुर्गा गौरी हिमगिरि जाता ।
उमा सती चण्डी जगदम्बा, काली तारा जग अविलम्बा ।।१०।।

राजा हरिश्चन्द्र दुःख हारिणी, पुत्र कलत्र राज्यसुखं कारिणी ।
दुर्गम नाम दैत्य अति दारूण, हिरण्याक्ष कुलजात अकारूण ।।११।।

उग्र तपस्या वधि वर पावा, सकल वेद हरी धर्म नशावा ।
तब हिमगिरि पहुँचे सब देवा, लागे करन मातु पद सेवा ।।१२।।

प्रगट करुणामयि शाकम्भरी, नाना लोचन शोभिनी शंकरि ।
दुःखित देखि देवगण माता, दयामयि हरि सब दुःख जाता ।।१३।।

शाक मूल फल दी सुरलोका, क्षुधा तृषा हरली सब शोका ।
नाम शताक्षी सब जग जाना, शाकम्भरी अपर अभिघाना ।।१४।।

सुनि दुर्गम दानव संहारो, संकट मे सब लोक उबारो ।
किन्हीं तब सुरगण स्तुति-पूजा, सुत पालिनी माता नहि दूजा ।।१५।।

दुर्गा नाम धरे तब माता, संकट मोचन जग विख्याता ।
एहि विधि जब-जब उपजहिं लोका, दानव दुष्ट करहि सुर शोका ।।१६।।

तब-तब धरि अनेक अवतारा, पाप विनाशनि खल संहारा ।
पालहि विबुध विप्र अरू वेदा, हरहिं सकल संतन के खेदा ।।१७।।

जय जय शाकम्भरी जग माता, तब शुभ यश त्रिभुवन विख्याता ।
जो कोई सुजस सुनत अरू गाता, सब कामना तुरंत सो पाता ।।१८।।

नेति नेति तुअ वेद बखाना, प्रणब रूप योगी जन जाना ।
नहि तुअ आदि मध्य अरू अन्ता, मो जानत तुअ चरित्र अनन्ता ।।१९।।

हे जगदम्ब दयामयि माता, तू सेवत नहिं विपति सताता ।
एहि विधि जो तच्च गुण गण जाता, सो इह सुखी परमपद पाता ।।२०।।

मां शाकंभरी की कहानी

शाकंभरी माता की कथा ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़ी है। जब ब्रह्मांड का निर्माण हुआ था तब पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई थी और लोग भूख से मरने लगे थे। उस समय भगवान शिव ने मां पार्वती से प्रार्थना की और उसके बाद मां पार्वती ने अपनी तपस्या से एक नई देवी को जन्म दिया। वह शाकंभरी देवी थी और वह अन्न की रक्षा और समृद्धि के लिए प्रकट हुईं।

मां शाकंभरी देवी चालीसा के लाभ

मां शाकंभरी देवी चालीसा का पाठ करने से कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं और चालीसा से भक्तों को माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शाकंभरी माता चालीसा के पाठ से भक्तो को अन्न की प्राप्ति, धन-धान्य में वृद्धि, सुख-शांति, तथा रोगों और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।

मां शाकंभरी की पूजा आमतौर पर नवरात्रि के दौरान की जाती है और उन्हें विभिन्न प्रकार के अन्न, सब्जियों तथा फलों से भोग लगाते हैं। मां शाकंभरी की कृपा से अन्न की कमी दूर होती है और जीवन में समृद्धि आती है।

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