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दुर्गा कवच (Durga Kavach) एक ऐसा मंत्र हैं जिसके पथ से माँ दुर्गा की प्रार्थना की जाती हैं ताकि भक्तो के जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे। यह कवच दुर्गा माता के नौ रूपों के बारे में और माता के गुण और शक्ति के बारे वर्णन करता हैं। और भक्त इस कवच के जाप से माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

वे भक्त जो नियमित रूप से दुर्गा कवच का पाठ करते हैं उनके जीवन में दुःख और कष्ट धीरे धीरे खत्म हो जाते हैं। बुरी और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती हैं।

दुर्गा कवच : Durga Kavach Lyrics

ऋषि मारकंडे ने पूछा जभी |
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी ||
कि जो गुप्त मंत्र है संसार में |
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में ||
हर इक का जो कर सकता उपकार है |
जिसे जपने से बेडा ही पार है ||
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का |
जो हर काम पूरा करे सवाली का ||
सुनो मारकंडे मैं समझाता हूँ |
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ ||
कवच की मैं सुन्दर चौपाई बना |
जो अत्यंत है गुप्त देऊं बता ||
नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये |
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये ||
कहो जय जय महारानी की |
जय दुर्गा अष्ट भवानी की ||

पहली शैलपुत्री कहलावे | दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे ||
तीसरी चंद्रघंटा शुभनाम | चौथी कुश्मांड़ा सुख धाम ||
पांचवी देवी स्कंद माता | छटी कात्यायनी विख्याता ||
सातवी कालरात्रि महामाया | आठवी महागौरी जगजाया ||
नौवी सिद्धिधात्रि जग जाने | नव दुर्गा के नाम बखाने ||
महासंकट में वन में रण में | रोग कोई उपजे जिन तन में ||
महाविपत्ति में व्योहार में | मान चाहे जो राज दरबार में ||
शक्ति कवच को सुने सुनाये | मनोकामना सिद्धि नर पाए ||
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार | बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार ||

कहो जय जय जय महारानी की |
जय दुर्गा अष्ट भवानी की ||

हंस सवारी वाराही की | मोर चढी दुर्गा कौमारी ||
लक्ष्मी देवी कमल आसीना | ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा ||
ईश्वरी सदा करे बैल सवारी | भक्तन की करती रखवारी ||
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला | हल मूसल कर कमल के फ़ूला ||
दैत्य नाश करने के कारण | रुप अनेक कीन है धारण ||
बार बार चरण सीस नवाऊं | जगदम्बे के गुण को गाऊँ ||
कष्ट निवारण बलशाली माँ | दुष्ट संघारण महाकाली माँ ||
कोटि कोटि माता प्रणाम | पूर्ण कीजो मेरे काम ||
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ |
मेरी रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ ||

कहो जय जय जय महारानी की |
जय दुर्गा अष्ट भवानी की ||

अग्नि से अग्नि देवता | पूर्व दिशा में ऐन्द्री ||
दक्षिण में वाराही मेरी | नैऋत्य में खडग धारिणी ||
वायु से माँ मृगवाहिनी | पश्चिम में देवी वारुणी ||
उत्तर में माँ कौमारी जी | ईशान में शूल धारी जी ||
ब्रह्माणी माता अर्श पर | माँ वैष्णवी इस फर्श पर ||
चामुंडा दस दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो |
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ||

सन्मुख मेरे देवी जया | पाछे हो माता विजया ||
अजिता खड़ी बाएं मेरे | अपराजिता दायें मेरे ||
उद्योतिनी माँ शिखा की | माँ उमा देवी सिर की ही ||
माला धारी ललाट की, और भृकुटि की माँ यशस्वनी |
भृकुटि के मध्य त्रयनेत्रा, यम घंटा दोनो नासिका ||
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी |
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो ||
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ||

ऊपर व नीचे होठों की | माँ चर्चका अमृतकली ||
जीभा की माता सरस्वती | दांतों की कौमारी सती ||
इस कंठ की माँ चण्डिका | और चित्रघंटा घंटी की ||
कामाक्षी माँ ठोड़ी की | माँ मंगला इस वाणी की ||
ग्रीवा की भद्रकाली माँ | रक्षा करे बलशाली माँ ||
दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारणी |
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जगतारणी ||
शूलेश्वरी, कूलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी |
छाती स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जगवासिनी ||
हृदय उदर और नाभि के, कटि भाग के सब अंगों की |
गुह्येश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की ||
घुटनों जन्घाओं की करे रक्षा वो विंध्यवासिनी |
टखनों व पाँव की करे रक्षा वो शिव की दासनी ||
रक्त मांस और हड्डियों से जो बना शरीर |
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर ||
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण अपान समान |
सत, रज, तम के गुणों में फँसी है यह जान ||
धार अनेकों रुप ही रक्षा करियो आन |
तेरी कृपा से ही माँ सब का है कल्याण ||
आयु यश और कीर्ति धन सम्पति परिवार |
ब्रह्माणी और लक्ष्मी, पार्वती जगतार ||
विद्या दे माँ सरस्वती सब सुखों की मूल |
दुष्टों से रक्षा करो हाथ लिए त्रिशूल ||

भैरवी मेरे जीवन साथी की, रक्षा करो हमेश |
मान राज दरबार में देवें सदा नरेश ||

यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये |
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाये ||
ऐ जग जननी कर दया, इतना दो वरदान |
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान ||
मनवांछित फल पाए वो, मंगल मोद बसाए |
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर आये ||
ब्रह्माजी बोले सुनो मारकंडे|
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया ||
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा |
जगत की भलाई को मैंने बताया ||
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित |
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया ||
मैं जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो |
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया ||
जो संसार में अपने मंगल को चाहे |
तो हरदम यही कवच गाता चला जा ||
बियावान जंगल दिशाओं दशों में |
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा ||
तू जल में, तू थल में, तू अग्नि पवन में |
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा ||
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे |
अपने कदम आगे बढ़ता चला जा ||
तेरा मान धन धाम इससे बढेगा |
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए ||
यही मंत्र, यन्त्र यही तंत्र तेरा |
यही तेरे सिर से है संकट हटायें ||
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक |
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये ||
इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर |
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए ||
इस कवच को प्रेम से जो पढे |
कृपा से आदि भवानी की, बल और बुद्धि बढे ||
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम |
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम ||
कृपा करो मातेश्वरी, बालक मैं नादान |
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैय्या कल्याण ||
|| जय माता दी ||

दुर्गा कवच के संस्कृत श्लोक – Sanskrit Shloka

॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,

चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,

श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच

यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।, यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥

ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।, देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।, तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।, सप्तमं कालरात्री च महागौरीति चाष्टमम्॥४॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।, विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।, नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां सिद्धि प्रजायते।, ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।, ऐन्द्री गजसमारुढ़ा वैष्णवी गरुड़ासना॥९॥

माहेश्‍वरी वृषारुढ़ा कौमारी शिखिवाहना।, ब्राह्मी हंससमारुढ़ा सर्वाभरणभूषिता॥११॥

नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥१२॥

दृश्यन्ते रथमारुढ़ा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।, शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।, कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानाम अभ्याय च।, धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥

महाबले महोत्साहे ।

महाभयविनाशिनि॥१६॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।, प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।, प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥

उदीच्यां रक्ष कौबेरी ऐशान्यां शूलधारिणी।, ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।, जया मे चाग्रतः स्तातु विजयाः स्तातु पृष्ठतः॥२०॥

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।, शिखामेद्योतिनि रक्षेद उमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।, त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।, कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥२३॥

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।, अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठ मध्येतु चण्डिका।, घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।, ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।, खड्ग्धारिन्यु भौ स्कन्धो बाहो मे वज्रधारिणी॥२७॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुली स्त्था।, नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षे नलेश्‍वरी॥२८॥

स्तनौ रक्षेन्महालक्ष्मी मनः शोकविनाशिनी।, हृदय्म् ललिता देवी उदरम शूलधारिणी॥२९॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद् ।

गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा ॥३०॥

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी भूतनाथा च मे ड्रम्मे ऊरू महि शववाहिनी।, जङ्घे महाबला प्रोक्ता सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥

गुल्फयोर्नारसिंही च पादौ च नित तेजसी।, पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।, रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा॥३३॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।, अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी॥३४॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूड़ामणिस्तथा।, ज्वालामुखी नखज्वाला अभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।, अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षमे धर्मचारिणी॥३६॥

प्राणापानौ तथा व्यानम समानोदानमेव च।

यश्तकीर्तिं च लक्ष्मी च सदा रक्षत वैष्णवी

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।, पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥

मार्गं क्षेमकरी रक्षेत।, विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।, तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।, कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रार्थी गच्छति॥४३॥

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।
परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥४४॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।, त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।, यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येपपराजितः।, जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः। ४७॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।, स्थावरं जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥

आभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।, भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः॥४९॥

सहजाः कुलजा मालाः शाकिनी डाकिनी तथा।, अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः॥५०॥

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।, ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।, मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।, जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।, तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।, प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥

इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।

दुर्गा कवच का पाठ कैसे करें?

वे भक्त जो श्री दुर्गा कवच का पाठ करना चाहते हैं वे अपने घर के मंदिर में पथ कर सकते हैं और अगर आपके घर में माता की मूर्ति या चित्र नहीं हैं तो अपने घर के मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित करे। मंदिर के आसपास का वातावरण शांत होना चाहिए ताकि कवच के पाठ में आपको कोई बाधा ना आये। आपको अपने मन को शांत रखना हैं।

दुर्गा कवच के लाभ

दुर्गा कवच का प्रतिदिन जाप करने पर भक्तो को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं। कवच के जाप से मन को स्थिरता मिलता हैं और मन शांत रहता हैं। कार्य करने का सहस रहता हैं और आत्मविश्वास बढ़ता हैं। शरीर में सकारत्मक ऊर्जा का विस्तार होता हैं, और माता का आशीर्वाद सदा अपने भक्तो पर बना रहता हैं।

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