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Giriraj Chalisa भगवान श्री कृष्ण के लिए हैं जो उनके निवास स्थान, गोवर्धन पर्वत की आराधना करने का एक मंत्र है। यह चालीसा भगवान श्री कृष्ण के श्रद्धालुओं के लिए भक्ति व्यक्त करने का एक साधन है जो इसे पढ़ना है वह भक्ति, समर्पण और शक्ति का अनुभव करता है। जो लोग गिरिराज जी की पूजा करते हैं वह अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों और बाधाओं से दूर रहते हैं। Giriraj Chalisa में वर्णित भगवान श्री कृष्ण के गुण और लीलाओं के बारे में बताया गया है जो अटूट प्रेम और भक्ति की प्रेरणा देता है।

श्री गिरिराज चालीसा ( Shree Giriraj Chalisa)

गिरिराज चालीसा में भगवान श्री कृष्ण की कृपा के बारे में बताया गया है साथ ही गिरिराज जी की महिमा और भक्तों के लिए भक्ति के मार्ग को प्रदर्शित किया गया है। भगवान श्री कृष्ण के भक्त, भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ सके और आस्था और विश्वास को मजबूत बनाए रखें। यह चालीसा मानसिक शांति और संतोष पहुँचती हैं। वे लोग जो प्रकृति के महत्व को थोड़ा कम समझते हैं वे इस Giriraj Chalisa के माध्यम से जान सकते हैं कि एक प्रकृति का महत्व और उसका सुंदरता कितनी जरूरी है।

भगवान श्री कृष्ण की लीला अपरंपार है। बात करें अगर महाभारत की तो भगवान श्री कृष्णा उस समय अर्जुन के रथ पर सवार थे और इस समय अर्जुन के रथ पर जो ध्वज मौजूद था वह हनुमान जी का ध्वज था, जिसे कपि ध्वज कहा जाता है। अगर आप एक हनुमान भक्त हैं तो आपको हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए।

दोहा

बन्दहुँ वीणा वादिनी धरि गणपति को ध्यान |

महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ||

सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार |

बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार ||

चौपाई

जय हो जय बंदित गिरिराजा || 1
ब्रज मण्डल के श्री महाराजा || 2
विष्णु रूप तुम हो अवतारी || 3
सुन्दरता पै जग बलिहारी || 4
स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें || 5
सुर मुनि गण दरशन कूं आवें || 6
शांत कंदरा स्वर्ग समाना || 7
जहाँ तपस्वी धरते ध्याना || 8
द्रोणगिरि के तुम युवराजा || 9
भक्तन के साधौ हौ काजा || 10
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये || 11
जोर विनय कर तुम कूं लाये || 12
मुनिवर संघ जब ब्रज में आये || 13
लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये || 14
विष्णु धाम गौलोक सुहावन || 15
यमुना गोवर्धन वृन्दावन || 16
देख देव मन में ललचाये || 17
बास करन बहुत रूप बनाये || 18
कोउ बानर कोउ मृग के रूपा || 19
कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा || 20
आनन्द लें गोलोक धाम के || 21
परम उपासक रूप नाम के || 22
द्वापर अंत भये अवतारी || 23
कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी || 24
महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी || 25
पूजा करिबे की मन में ठानी || 26
ब्रजवासी सब के लिये बुलाई || 27
गोवर्धन पूजा करवाई || 28
पूजन कूं व्यंजन बनवाये || 29
ब्रजवासी घर घर ते लाये || 30
ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी || 31
सहस भुजा तुमने कर लीनी || 32
स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में || 33
मांग मांग के भोजन पावें || 34
लखि नर नारि मन हरषावें || 35
जै जै जै गिरिवर गुण गावें || 36
देवराज मन में रिसियाए || 37
नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए || 38
छाया कर ब्रज लियौ बचाई || 39
एकउ बूंद न नीचे आई || 40
सात दिवस भई बरसा भारी || 41
थके मेघ भारी जल धारी || 42
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे || 43
नमो नमो ब्रज के रखवारे || 44
करि अभिमान थके सुरसाई || 45
क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई || 46
त्राहि माम मैं शरण तिहारी || 47
क्षमा करो प्रभु चूक हमारी || 48
बार बार बिनती अति कीनी || 49
सात कोस परिकम्मा दीनी || 50
संग सुरभि ऐरावत लाये || 51
हाथ जोड़ कर भेंट गहाए || 52
अभय दान पा इन्द्र सिहाये || 53
करि प्रणाम निज लोक सिधाये || 54
जो यह कथा सुनैं चित लावें || 55
अन्त समय सुरपति पद पावैं || 56
गोवर्धन है नाम तिहारौ || 57
करते भक्तन कौ निस्तारौ || 58
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें || 59
तिनके दुख दूर ह्वै जावे || 60
कुण्डन में जो करें आचमन || 61
धन्य धन्य वह मानव जीवन || 62
मानसी गंगा में जो नहावे || 63
सीधे स्वर्ग लोक कूं जावें || 64
दूध चढ़ा जो भोग लगावें || 65
आधी व्याधि तेहि पास न आवें || 66
जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें || 67
मन वांछित फल निश्चय पावें || 68
जो नर देत दूध की धारा || 69
भरौ रहे ताकौ भण्डारा || 70
करें जागरण जो नर कोई || 71
दुख दरिद्र भय ताहि न होई || 72
श्याम शिलामय निज जन त्राता || 73
भक्ति मुक्ति सरबस के दाता || 74
पुत्रहीन जो तुम कूं ध्यावें || 75
ताकूं पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें || 76
दण्डौती परिकम्मा करहीं || 77
ते सहजहिं भवसागर तरहीं || 78
कलि में तुम सक देव न दूजा || 79
सुर नर मुनि सब करते पूजा || 80

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