भगवान राम और माता शबरी की कथा अत्यंत प्रेरणादायक है। यह एक ऐसी कहानी है जो भक्ति, निस्वार्थ प्रेम और समाज के सभी वर्गों के बीच समानता का संदेश देती है। इस लेख में आप माता शबरी कवच के बारे में जानोगे।
शबरी कवच हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जो शबरी माता को समर्पित है। इस कवच का जाप करने से भक्त को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं जैसे कि संकटों से मुक्ति, मन की शांति, और जीवन में सफलता। तो आइये शबरी कवच के बारे में तथा इसके महत्त्व के बारे में जानते है।
हमने अपने पिछले लेखो में कई महत्वपूर्ण कवच का वर्णन किया है आप उन्हें भी देख सकते है जैसे सुदर्शन कवच, राधा कवच, कामाख्या कवच, सरस्वती कवच और लक्ष्मी कवच।
शबरी कवच (Shabari Kavach)
॥ अथ शाबरी कवच पाठ ॥
ॐ सर्वविघ्ननाशाय । सर्वारिष्ट निवारणाय ।
सर्व सौख्यप्रदाय । बालानां बुद्धिप्रदाय ।-१
नानाप्रकारकधनवाहन भूमिप्रदाय ।
मनोवांछितफलप्रदाय । रक्षां कुरु कुरु स्वाहा ।-२
ॐ गुरुवे नमः । ॐ श्रीकृष्णाय नमः ।
ॐ बल भद्राय नमः । ॐ श्रीरामाय नमः ।-३
ॐ हनुमते नमः । ॐ शिवाय नमः ।
ॐ जगन्नाथाय नमः । ॐ बद्रिनारायणाय नमः ।-४
ॐ दुर्गादेव्यै नमः । ॐ सूर्याय नमः ।
ॐ चंद्राय नमः । ॐ भौमाय नमः ।-५
ॐ बुधाय नमः । ॐ गुरुवे नमः ।
ॐ भृगवे नमः । ॐ शनैश्र्वराय नमः ।-६
ॐ राहवे नमः । ॐ पुच्छनायकाय नमः ।
ॐ नवग्रह रक्षा कुरु कुरु नमः ।-७
ॐ मन्ये वरं हरिहरादय एवं दृष्ट्वा ।
दृष्टेषु हृदयं त्वयि तोषमेतिः ।-८
किं वीक्षितेन भवता भुवि अेन नान्यः
कश्र्चित् मनो हरति नाथ भवानत एहि ।-९
ॐ नमः श्रीमन्बलभद्रजयविजय अपराजित
भद्रं भद्रं कुरु कुरु स्वाहा ।-१०
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥-११
सर्वविघ्नशांति कुरु कुरु स्वाहा ।
ॐ ऐं, र्हीं, क्लीं, श्री बटुकभैरवाय ।-१२
आपदुद्धरणाय । महानभस्याय स्वरुपाय ।
दीर्घारिष्टं विनाशय विनाशय ।-१३
नानाप्रकारभोगप्रदाय । मम सर्वारिष्टं हन हन ।
पच पच, हर हर, कच कच, |-१४
राजद्वारे जयं कुरु कुरु ।
व्यवहारे लाभं वर्धय वर्धय ।-१५
रणे शत्रुं विनाशय विनाशय ।
अनापत्तियोगं निवारय निवारय ।-१६
संतत्युत्पत्तिं कुरु कुरु । पूर्ण आयुः कुरु कुरु ।
स्त्रीप्राप्तिं कुरु कुरु । हुं फट् स्वाहा ॥-१७
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।
ॐ नमो भगवते विश्र्वमूर्तये नारायणाय ।-१८
श्रीपुरुषोत्तमाय रक्ष रक्ष ।
युष्मदधीनं प्रत्यक्षं परोक्षं वा ।-१९
अजीर्ण पच पच ।
विश्र्वमूर्ते अरीन् हन हन ।-२०
एकाहिकं द्व्याहिकं, त्र्याहिकं, चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय ।
चतुरधिकान्वातान् अष्टादशक्षयरोगान्, अष्टादशकुष्टान् हन हन।-२१
सर्वदोषान् भंजय भंजय । तत्सर्वं नाशय नाशय ।
शोषय शोषय, आकर्षय आकर्षय ।-२२
मम शत्रुं मारय मारय । उच्चाटय उच्चाटय, विद्वेषय विद्वेषय ।
स्तंभय स्तंभय, निवारय निवारय ।-२३
विघ्नान् हन हन । दह दह, पच पच,
मथ मथ, विध्वंसय विध्वंसय, विद्रावय विद्रावय |-२४
चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हन हन ।
पर विद्या छेदय छेदय ।-२५
चतुरशीतिचेटकान् विस्फोटय नाशय नाशय ।
वातशूलाभिहत दृष्टीन् ।-२६
सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पदान ।
अपरे बाह्यांतरा दिभुव्यंतरिक्षगान् ।-२७
अन्यानपि कश्र्चित् देशकालस्थान् ।
सर्वान् हन हन । विषममेघनदीपर्वतादीन् ।-२८
अष्टव्याधीन् सर्वस्थानानि रात्रिदिनपथग
चोरान् वशमानय वशमानय ।-२९
सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय ।
परसैन्यं विदारय विदारय परचक्रं निवारय निवारय ।-३०
दह दह रक्षां कुरु कुरु ।
ॐ नमो भगवते ॐ नमो नारायण हुं फट् स्वाहा ।-३१
ठः ठः ॐ र्हां र्हीं हृदये स्वदेवता ॥
एषा विद्या महानाम्नी पुरा दत्ता शतक्रतोः ।-३२
असुरान् हन्तु हत्वा तान् सर्वाश्र्च बलिदानवान् ।
यः पुमान् पठते नित्यं वैष्णवीं नियतात्मवान् ।-३३
तस्य सर्वान् हिंसती यस्या दृष्टिगतं विषम् ।
अन्यादृष्टिविषं चैव न देयं संक्रमे ध्रुवम् ।
संग्रामे धारयत्यंगे उत्पातशमनी स्वयम् ॥-३४
सौभाग्यं जायते तस्य परमं नात्र संशयः ।
हूते सद्यो जयस्तस्य विघ्नं तस्य न जायते ।-३५
किमत्र बहुनोक्तेन सर्वसौभाग्यसंपदः ।
लभते नात्र संदेहो नान्यथा नदिते भवेत् ॥-३६
गृहीतो यदि वा यत्नं बालानां विविधैरपि ।
शीतं चोष्णतां याति उष्णः शीतमयो भवेत् ॥-३७
नान्यथा श्रुयते विद्यां यः पठेत् कथितां मया ।
भूर्जपत्रे लिखेद्यंत्र गोरोचनमयेन च ।-३८
इमां विद्यां शिरोबंधात्सर्वरक्षां करोनु मे ।
पुरुषस्याथवा नार्या हस्ते बध्वा विचक्षणः ।-३९
विद्रवंति प्रणश्यंति धर्मस्तिष्ठति नित्यशः ।
सर्वशत्रुभयं याति शीघ्रं ते च पलायिताः ॥-४०
ॐ ऐं, र्हीं, क्लीं, श्रीं भुवनेश्र्वर्यै ।
श्रीं ॐ भैरवाय नमो नमः ।-४१
अथ श्रीमातंगीभेदा, द्वाविंशाक्षरो मंत्रः ।
समुख्यायां स्वाहातो वा ॥-४२
हरिः ॐ उच्चिष्टदेव्यै नमः ।
डाकिनी सुमुखिदेव्यै महापिशाचिनी ।-४३
ॐ ऐं, र्हीं, ठाः, ठः द्वाविंशत् ॐ चक्रीधरायाः ।
अहं रक्षां कुरु कुरु ।-४४
सर्वबाधाहरिणी देव्यै नमो नमः ।
सर्वप्रकार बाधाशमनं, अरिष्टनिवारणं कुरु कुरु ।-४५
फट्, श्री ॐ कुब्जिकादेव्यै र्हीं ठः स्वः ।
शीघ्रं अरिष्टनिवारण कुरु कुरु ।-४६
देवी शाबरी कीं ठः, स्वः ।
शारीरिकं भेदाहं माया भेदय पूर्ण आयुः कुरु ।-४७
हेमवती मूलरक्षां कुरु ।
चामुंडायै देव्यै नमः ।-४८
शीघ्रं विघ्ननिवारणं सर्ववायुकफपित्तरक्षां कुरु ।
भूतप्रेतपिशाचान् घातय ।-४९
जादूटोणाशमनं कुरु ।
सती सरस्वत्यै चंडिकादेव्यै गलं विस्फोटकान्,|-५०
वीक्षित्य शमनं कुरु ।
महाज्वरक्षयं कुरु स्वाहा ।-५१
सर्वसामग्री भोग सत्यं, दिवसे दिवसे,
देहि देहि रक्षां कुरु कुरु ।-५२
क्षणे क्षणे, अरिष्टं निवारय ।
दिवसे दिवसे, दुःखहरणं, मंगलकरणं|-५३
कार्यासिद्धिं कुरु कुरु ।
हरि ॐ श्रीरामचंद्राय नमः ।-५४
हरिः ॐ भूर्भुवः स्वः
चंद्रतारा-नवग्रह-शेष-नाग-पृथ्वी-देव्यै|-५५
आकाश-निवासिनी सर्वारिष्टशमनं कुरु स्वाहा ॥
आयुरारोग्यमैश्र्वर्यं वित्तं ज्ञानं यशोबलम् ॥-५६
नाभिमात्रजले स्थित्वा सहस्त्रपरिसंख्यया ॥
जपेत्कवचमिदं नित्यं वाचां सिद्धिर्भवे त्ततः ॥-५७
अनेन विधिना भक्त्याकवचसिद्धिश्र्च जायते ॥
शतमावर्तयेद्युस्तु मुच्यते नात्र संशयः ॥-५८
सर्वव्याधिभयस्थाने मनसा ऽ स्य तु चिंतनम् ॥
राजानो वश्यतां यांति सर्वकामार्थसिद्धये ॥-५९
अनेन यथाशक्तिपाठेन शाबरीदेवी प्रीयतां नमम ॥
शुभं भवतु ॥ इति शाबरी कवच ॥-६०
शबरी कवच के महत्व
शबरी कवच एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है जिसके पाठ से भक्त पर भगवन राम और माता शबरी की असीम कृपा रहती है। शबरी कवच का पाठ आप पूर्व दिशा में मुख रखकर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ में करे।
शबरी कवच का जाप करने से भक्त को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। भक्त का मन शांत रहता है और चिंता तथा तनाव से मुक्ति मिलती है। यह कवच धन और समृद्धि लाने में भी सहायक होता है और शबरी कवच का नियमित जाप करने से व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है।
भगवान राम और शबरी माता की कथा
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में भगवान राम और माता शबरी की कहानी एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। जब भगवान राम और लक्ष्मण वनवास के दौरान दंडकारण्य पहुंचे, तो उन्हें माता शबरी मिली।
माता शबरी ने भगवान राम को बड़े प्रेम से बेर खिलाए। उन्होंने जंगल में से बेर तोड़े थे और उन्हें चखकर मीठा पाकर ही भगवान राम को दिए थे। भगवान राम ने उन बेर को प्रेमपूर्वक ग्रहण किया। यह एक ऐसा दृश्य था जो भक्ति और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक बन गया। और इसके बाद से उन्हें बेरशबरी के नाम से जाना जाने लगा।
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