भगवान शिव की महिमा बहुत निराली है और Shiv Chalisa उनकी महिमा का एक स्रोत है। जो भगवान शिव के भक्तों के लिए भक्ति और शांति प्राप्त करने का एक बेहतर तरीका है। श्री भगवान शिव चालीसा का जाप करने से जीवन में शांति, स्मृति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। इस चालीसा में भगवान शिव के विभिन्न रूपों, शक्तियों और गुना के बारे में बताया गया है भगवान शिव को संहार और सृजन के देवता के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव हिंदू धर्म में एक बहुत ही उच्च स्थान रखते हैं। हर व्यक्ति भगवान शिव की भक्ति में लीन रहना चाहता है और Shiv Chalisa का जाप करके अपनी प्रेम भक्ति को भगवान शिव के लिए व्यक्त करना चाहता है।
श्री शिव चालीसा (Shree Shiv Chalisa)
शिव चालीसा का पाठ करने से मन शांत रहता हैं और भगवान शिव के भक्त हर मुश्किल और कष्टों से दूर रहते हैं चालीसा का जाप करने से मन तो शांत रहता ही हैं साथ ही मन का संतुलन भी बना रहता हैं। वे लोग जो किसी नकारात्म ऊर्जा से प्रभावित हैं वे चालीसा का जाप करके सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करते हैं और नयी ऊर्जा का संचार करते हैं। अगर आप किसी संकट में हैं और परेशान हैं तब भगवान शिव का ध्यान करे। भगवान हनुमान, भगवान शिव के अवतार हैं और इनकी हनुमान चालीसा भी भक्तो के लिए मौजूद हैं।
दोहा
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
चालीसा
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥ 1
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥ 2
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ 3
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ 4
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ 5
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ 6
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ 7
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ 8
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ 9
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ 10
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ 11
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ 12
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ 13
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ 14
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥ 15
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ 16
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ 17
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥ 18
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥ 19
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥ 20
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥ 21
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥ 22
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥ 23
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥ 24
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥ 25
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥ 26
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥ 27
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥ 28
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥ 29
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥ 30
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥ 31
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥ 32
ऋणिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥ 33
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥ 34
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥ 35
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥ 36
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ 37
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥ 38
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥ 39
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा | तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
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